हम देखेंगे
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल[1] में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां [2]
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों[3] के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम[4] के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत[5] उठवाए जाएँगे
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
बस नाम रहेगा अल्लाह[8] का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़[11] का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा[12]
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
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